naimishtirth
 
 
परिचय

नैमिषारण्य धाम के ब्राम्हण परिवार में सूर्य के समान तेजस्विता लिये हुये जब श्री शास्त्री जी ने अपने जीवन के प्रभात का दर्शन किया था. उस समय 10 नवंम्बर 1971 का गगन, प्राकतिक रुप से निर्मल तथा दिन के सूर्य की किरणों से ओतप्रोत था.

पूज्य शास्त्री जी के पिता का नाम श्री सत्यव्रत जी दिक्षीत, तथा माताश्री क नाम श्रीमती शिवदेवी दिक्षीत है. शास्त्री जी के पिताश्री जन्म से ही भागवत के परम विद्वान होने से घर साधारण तया: बोलचाल एवं व्यवहार में श्रीमदभागवत के सूत्रों तथा श्लोंकोंका उच्चारणा किया जाता था. श्री शास्त्री जी का एक सफल भागवतकार होना इसी का सुखद प्रतिकल है. सन 1990 में श्रीमदभागवत प्रचार संस्थान नामक एक संस्था का निर्माण किया है. श्री शास्त्री जी ने अभी तक 321 कथायें मुलपाठ एवं प्रवचनों सहित की है. भागवत कथा के अतिरिक्त रामकथा पर भी शास्त्री जी का अनुभव कुछ कम नहीं है. गले कि मिठास तो साक्षात सरस्वती मा का आर्शिवाद है. शब्द संगम तो जीवन का आभूषण है.

शास्त्री जी के प्रवाह में कॄष्ण प्रेम की गंगा बहना तो उस प्रकार का सत्य है, जैसे फूलों से सुगंन्ध होना सत्य है. माखन चोर की कथा का जीवन्त निरुपण करना तो शास्त्री जी का स्वभाव है. कम आयु में ही भारत की श्रेष्ठ करवीर पीठ के शंकराचार्य द्वारा बालव्यास की उपाधि का मानपत्र प्राप्त करनेवाले, तथा भारत के विभिन्न प्रांन्तो में सत्संग के माध्यम से सन्मान को प्राप्त करनेवाले श्री शास्त्री जी, वर्तमान में 35 वर्ष कि अवस्था के है.



 


 
नैमिषारण्य धाम

अनादि तीर्थ है भारत का - नैमिषारण्य धाम
यह पावन धाम उत्तर के लखनऊ क्षेत्र के अर्न्तगत जनपद सीतापुर में स्थित है.
यह वेदो और पुराणों कि भूमि है, इसी पावन भूमि पर महर्षि वेद व्यास जी द्वारा द्वापर युग मे 4 वेद 18 पुराण 6 शास्त्र, गीता, महाभारत, उपनिषद आदि का निर्माण करके अखिल विश्व कल्याण के लिये एक महान ज्ञान सत्र आयोजित किया गया था. जिसमे लोक लोकांन्तर के सभी 88000 ऋषि-मुनि, 33 करोड देवता 3.5 करोड तीर्थ तथा भूमण्डल के सभी चराचर जीव सम्मिलित हुये थे.
संसार के सभी तीर्थो कि यात्रा करने से अच्छा है, की सभी पुराणों में स्पष्ट अंकित है कि पॄथ्वी पर के समस्त तीर्थ नैमिषारण्य मे विराजमान है.

चार वेद और चार ही ॠषी-गण

श्री व्यास जी ने .........., से व्यापक चार वेदों का निरुपणा किया था. उनके समुचित विकास के लिए चार प्रमुख शिष्यों का चयन किया था.
1 - सामवेद 2 - अथर्ववेद 3 - ॠगवेद 4 - यर्जुवेद
क्रम : एक से एक वेद का ज्ञान प्रदान किया था और इनमें से 1 - महर्षि जैमिनी 2 - वैश्यंम्पायन 3 - अंगिरा 4 - पैल
1 - महर्षि जैमिनी - सामवेद
2 - वैश्यंम्पायन - अथर्ववेद
3 - अंगिरा - ॠगवेद
4 - पैल - यर्जुवेद
..... पुरण तथा शास्त्र : समस्त ऋषि-मुनियों को उपदे करने की पवित्र भूमि पर आज भी 5090 वर्षीय वटवॄक्ष के दर्शन आज भी सुलभ है.

|| नैमिषारण्य में मनु : शतरुपा ||

प्रजापिता ब्रम्हा के दाहिने कंधे से प्रथम पुत्र श्री मनु जी महाराज तथा बाये कंन्धे से प्रथम पुत्री श्री शतरुपा जी का प्रागटय हुआ था. जिनसे ही सारी मानव सॄष्टि का सॄजन हुआ है. गोस्वामी श्री तुलसीदास जी ने राम चरित मानस में कहा है कि
स्वयम्भू मनु अरु शतरुपा | जिन्हते भइ नर सॄष्टि अनूपा ||
समस्त जगत कल्याण के लिये तपोबन नैमिषारण्य में ही सतयुग में 23 हजार वर्ष तक इतनी कठिन तपस्या किया, कि निराकार ब्रम्ह को साकार होकर प्रगट होना पडा. ऍसी पावन भूमि आप सभी को आमंत्रित कर रही है.

इस पावन चरित्र को पढने हेतु मानस बालकाण्ड के दोहा संख्या 144 पर देखे.



 



श्री शास्त्री जी का कथा सत्संग पाने हेतु भा
रत में निम्नंकित किसी भी नंबररात कर सकते
प्रधान कार्यालय
श्री शैलेंद्र शास्त्री जी महाराज
संरक्षक श्रीमद भागवत प्रचार संस्थान
व्यासगद्दी नैमिषारण्य
जि. सीतापूर उ. प्र. भार त 26140
महाराष्ट्र : 0257-2228791
गुजरात : 09327548048
मध्यप्रदेश
: 09826696500
राजस्थान
:  09829954641
अमेरीका : 309-846-2239
दिल्ली : 09897247870
बिहार
: 09431122592
आंन्धप्रदेश
: 0949013412
कर्नाटक
: 09844140012